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21 " और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का गुप्तदान कर रही थी। "
― Munshi Premchand , गोदान [Godaan]
22 " से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली–अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी "
23 " आत्माभिमान को भी कर्त्तव्य के सामने सिर झुकाना पड़ेगा। "
24 " बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमे उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं। "
25 " को नाटक का रूप देकर उसे शिष्ट मनोरंजन का साधन बना दिया था। इस अवसर पर उनके यार-दोस्त, हाकिम-हुक्काम सभी निमंत्रित होते थे। और दो-तीन दिन इलाक़े में बड़ी चहल-पहल रहती थी। राय साहब का परिवार बहुत विशाल था। कोई डेढ़ सौ सरदार एक साथ भोजन करते थे। कई चचा थे, दरजनों चचेरे भाई, कई सगे भाई, बीसियों नाते के भाई। एक चचा साहब राधा के अनन्य उपासक थे और बराबर वृन्दाबन में रहते थे। भक्ति-रस के कितने ही कविता रच डाले थे और समय-समय पर उन्हें छपवाकर दोस्तों की भेंट कर देते थे। एक दूसरे चचा थे, जो राम के परमभक्त थे और फ़ारसी-भाषा में रामायण का अनुवाद कर रहे थे। रियासत से सबके वसीके बँधे हुए थे। किसी को कोई काम करने की ज़रूरत न थी। "
26 " कविता रच डाले थे "
27 " दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है "
28 " सभी मनस्वी प्राणियों में यह भावना छिपी रहती है और प्रकाश पाकर चमक उठती है। "
29 " एक अनु-पुष्य की भाँति धूप में खिली हुई, दूसरी ग़मले के फूल की भाँति धूप में मुरझाकी और निर्जीव। मालती "
30 " नौका पर बैठे हुए जल विहार करते समय हम जिन चट्टानों को घातक समझते हैं, और चाहते हैं की कोई इन्हें खोदकर फेंक देता, उन्ही से नौका टूट जाने पर हम चिमट जाते हैं । "
31 " जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है । "
32 " Good looks can stand anything but insult. "
33 " A person whose actions go against his principles is hardly an idealist. "
34 " सिंह का काम तो शिकार करना है, अगर वह गरजने और गुर्राने के बदले मीठी बोली बोल सकता तो उसे घर बैठे मनमाना शिकार मिल जाता। शिकार की खोज में जंगल में न भटकना पड़ता। "
35 " सुख के दिन आयें, तो लड़ लेना; दुख तो साथ रोने ही से कटता है। "
36 " बिना कुछ रस पाये थोड़े ही आता था। चिड़िया एक बार परच जाती है, तभी दूसरी बार आँगन में आती है। "
37 " बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, "
38 " आदमी जूठा तभी खाता है जब मीठा हो। कलंक चाँदी से ही धुलता है। "
39 " राष्ट्र का कल्याण हो, यही मेरी कामना है। एक व्यक्ति के सुख-दुःख का कोई मूल्य नहीं है। "
40 " ईट का जवाब चाहे पत्थर हो; लेकिन सलाम का जवाब तो गली नहीं है। "